नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ ६ ॥
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श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः
रात के समय ये पाठ ज्यादा फलदायी माना गया है.
देवी वैभवाश्चर्य अष्टोत्तर शत नामावलि
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व click here मे।।
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
पाठ मात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ ७ ॥
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